अलंकार में ‘ अलम्‘ और ‘कार‘ दो शब्द हैं। ‘अलम्‘ का अर्थ है भूषण या सजावट, अर्थात जो अलंकृत या भूषित करे , वह अलंकार है। स्त्रियाँ अपने साज- श्रृंगार के लिए आभूषणों का प्रयोग करती है, अतएव आभूषण अलंकार कहलाते हैं। ठीक इसी प्रकार कविता कामिनी अपने श्रृंगार औऱ सजावट के लिए आभूषणो का प्रयोग करती है , अतएव आभूषण अलंकार कहलाती है । ठीक इसी प्रकार कविता – कामिनी अपने श्रृंगार और सजावट के लिए जिन तत्वों का प्रयोग करती हैं व अलंकार कहलाते हैं ।रूपक अलंकार, उपमा , उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, श्लेष अलंकार , परिभाषा भेद, प्रकार, important for CTET, UPTET, STET and other competitive exams. Class 8,9,10,11,12.
अलंकार के संबंध में प्रथम काव्याशाश्त्रीय परिभाषा आचार्य दण्डी की है-
काव्यशोभाकरान धर्मान् अलंकारन् प्रचक्षेत् ।-
अर्थात् हम कह सकते हैं कि ” काव्य के शोभाकारक धर्म अलंकार हैं। “
अलंकार मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं-
(1.) शब्दालंकार (2.) अर्थालंकार (3.) उभयालंकार
शब्दालंकार
- अनुप्रास अलंकार
- श्लेष अलंकार
- यमक अलंकार
- वक्रोक्ति अलंकार
अर्थालंकार
- उपमा
- रूपक
- उत्प्रेक्षा
- काव्यलिंग
- विरोधाभास
शब्दालंकार के उदाहरण ( shabdalankar ke udharan)
अनुप्रास में वर्णों की आवृत्ति होती है । इस आवृत्ति में किसी वर्ण या शब्द का एक से अधिक बार आना महत्व रखता है । जैसे- मुदित महीपति मन्दिर आए सेवक सचिव सुमन्त बुलाए।
इस पद में ‘म’ तथा ‘स’ की आवृत्ति लयात्मक होती है । अनुप्रास भी कई प्रकार के होते हैं। इनमें छेकानुप्रास , वृत्यानुप्रास , लाटानुप्रास इत्यादि प्रमुख हैं।
छेकानुप्रास में स्वरूप और क्रम से अनेक व्यंजनों की एक बार आवृत्ति होती है तथा लाटानुप्रास में एक शब्द या वाक्यखण्ड की आवृत्ति होती है । वृत्यानुप्रास में एक शब्द या वाक्य खण्ड की आवृत्ति उसी अर्थ में होती है।
अनुप्रास अलंकार ( Anupras Alankar)
जिस रचना में व्यंजनों की बार बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है ।
कुल कानन कुंडल मोर पखा़
उत ते बनमाल विराजति है ।
इस में क वर्ण की आवृत्ति दो बार है अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है।
य़मक अलंकार ( yamak alankar)
जब कविता में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आए और उसका अर्थ हर बार भिन्न हो वहाँ यमक अलंकार होता है ।
कहै कवि बेनी, बेनी व्याल की चुराई लीना ,
रति-रति सोभा सब रति के सरीरी की ।
उपयुक्त पंक्तियों में बेनी की आवृत्ति दो बार हुई है , पहली में बेनी कवि की नाम तथा दूसरी में बेनी का अर्थ है चोटी ।
काली घटा का घमंड घटा
नभ मण्डल तारक वृन्द खिले ।
उपयुक्त पंक्ति में शरद के आगमन पर सौन्दर्य की चित्रण किया गया है । घटा का अर्थ है ‘काले बादल ‘ दूसरी बार घटा का अर्थ है ‘कम हो गया ‘
श्लेष अलंकार ( slesh alankar)
श्लेष का अर्थ है चिपकना , जहाँ शब्द एक ही बार प्रयोग होने पर दो भिन्न- भिन्न होते हैं वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है।
चरन धरत चिंता करत
फिर चितवत चहुँ ओर ।
‘ सुबरन’ को ढूँढत फिरत कवि व्यभिचारी चोर
सुबरन का प्रयोग किया गया है , जिसे कवि, व्यभिचारी , चोर तीनों ढूँढ रहे हैं। यहाँ सुबरन के तीन अर्थ हैं।
वक्रोक्ति अलंकार ( vakrokti alankar)
जहाँ बात किसी एक आशय से कही जाए और सुनने वाला उससे भिन्न दूसरा अर्थ लगा दे, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है ।
कैसौ सूधी बात में बरतन टेढों भाव।
वक्रोक्ति तासों कहै सही सबै कविराय।।
अर्थालंकार (arthalankar)
कविता में जब भाषा का प्रयोग इस प्रकार किया जाता है कि अर्थ में समृद्धि और चमत्कार उत्पन्न हो तो उसे अर्थालंकार कहते हैं। अर्थालंकार में सादृश्य प्रधान अलंकार मुख्य है । अर्थालंकार में सादृश्य प्रधान अलंकार प्रमुख है ।
प्रमुख अलंकार
- उपमा 2. रूपक 3. उत्प्रेक्षा 4. अतिशयोक्ति 5. अन्योक्ति 6. संदेह 7. भ्रांतिमान 8. दीपक 9. विभावना 10. अप्रस्तुत प्रशंशा 11. विरोधाभास
उपमा ( upma alankar)
अत्यंत सादृश्य के कारण सर्वथा भिन्न होते हुए भी जहाँ एक वस्तु या प्राणी की तुलना दूसरी प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी से की जाती है , वहाँ उपमा अलंकार होता है ।
‘नीलिमा चन्द्रमा जैसी सुन्दर है ‘ पंक्ति में नीलिमा तथा चन्द्रमा दोनोें सुन्दर होने के कारण सादृश्यता उत्पन्न हो गयी है ।
(क) उपमेंय – जिसको उपमा दी जाए – चाँद सा सुन्दर मुख , इस उदाहरण में मुख उपमेय है।
(ख) उपमान- वह प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी जिससे उपमेय की तुलना की जाए , उपमान कहलाता है । ऊपर के उदाहरण में चाँद उपमान है ।
(ग) साधारण धर्म- उपमेय उपमान का परस्पर समान गुण, इस उदाहरण में सुंदर साधारण धर्म को बता रहा है।
(घ) वाचक शब्द- जिन शब्दों की सहायता से उपमा अलंकार की पहचान होती है । सा, सी, तुल्य, सम,जैसा, सरिस , के समान आदि शब्द वाचक शब्द कहलाते हैं।
रूपक ( rupak alankar)
जहाँ गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय में ही उपमान का अभेद आरोप कर दिया गया हो , वहाँ रूपक अलंकार होता है ।
उदाहरण-
उदित उदयगिरि मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन-भृंग।।
अभेद आरोप होने के कारण रूपक अलंकार होता है ।
उत्प्रेक्षा ( utpreksha alankar)
जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना अथवा कल्पना कर ली गयी हो , वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसके बोधक शब्द हैं।
मनो, मानो, मनु, मनहु, जानो, जनु, जनहु, ज्यों आदि ।
उदाहरण
मानो माई घनघन अन्तर दामिनी।
घन दामिनी दामिनी घन अन्तर ष
सोभित हरि -ब्रज भामिनी।
उपर्युक्त काव्य – पंक्तियों में रासलीला का सुन्दर दृश्य दिखाया गया है । रास के समय पर गोपी को लगता है कि कृष्ण उसके पास नृत्य कर रहे हैं।
चमचमात चंचल नयन
विच घूँघट पट छीन ।
मानहु सुरसरिता विमल ,
जल उछरत जुग मीन।।
- सोहत ओढे पीत पर ,
- स्याम सलोने गात ।
- मनहुँ नीलमनि सैल पर ,
- आतप पर्यौ प्रभात ।।
अतिशयोक्ति अलंकार ( atishayokti alankar)
जहाँ बात को बढा – चढा कर प्रस्तुत किया जाए वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है ।
भूप सहस दस एकहिं बारा। लग उठावन तरत न टारा।।
हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग , लंका सिगरी जल गयी लगे निशाचर भाग।
अन्योक्ति अलंकार
जहाँ अप्रस्तुत के द्वारा प्रस्तुुत का व्यंग्यात्मक कथन किया जाए , वहाँ ‘ अन्योक्ति’ अलंकार होता है ।
नहिं पराग नहीं मधुर मधु ,
नहिं विकास इहिं काल।
अली कली ही सों बँध्यों ,
आगे कौन हवाल।।
इस कवि में भौंरे का प्रताडित करने के बहाने कवि ने राजा जयसिंह की काम-लोलुपता पर व्यंग किया है । अतएव यहाँ अन्योक्ति है।
संदेह अलंकार ( sandeh alankar)
जहाँ किसी वस्तु को देखकर संशय बना रहे , निश्चय न हो , वहाँ संदेह अलंकार होता है ।
उदाहरण –
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है ,
कि सारी ही की नारी है, कि नारी ही की सारी है ।
यह मुख है या चन्द्र है ।
भ्राँतिमान अलंकार ( bhrantiman alankar)
जहाँ भ्रमवश किसी एक चीज को देखकर उसके समान किसी वस्तु का भ्रम हो तब भ्राँतिमान अलंकार होता है ।
उदाहरण
वृन्दावन विहरत फिरै राधा नन्दकिशोर।
नीरद यामिनी जानि सँग डोलैं बोलैं मोर।।
दीपक अलंकार
जहाँ उपमेय और उपमान दोनों का एक धर्म कहा जाए , वहाँ दीपक अलंकार होता है
मुख और चन्द्र शोभते हैं।
विभावना अलंकार
विभावना शब्द का अर्थ है- जहाँ बिना कारण के ही कार्य हो जाये वहाँ विभावना अलंकार होता है।
बिनु पद चले सुने बिनु काना ।
कर बिनु करम करे विधि नाना ।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वकता , बड़ जोगी।।
अप्रस्तुत प्रशंसा
जहाँ अप्रस्तुत का वर्णन करते हुए प्रस्तुत का कथन होता है , वहाँ अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार होता है।
उदाहरण
सागर की लहर-लहर में है ह्वास स्वर्ण किरणों का।
सागर के अन्तस्ल में अवसाद अवाक कणों का ।. पंत
विरोधाभास अलंकार
जहाँ वास्तविक विरोध न हो कर विरोध का आभाश मात्र हो वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है । उदाहरण
या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोय ।
ज्यों -ज्यों बूडे श्याम रंग, त्यों -त्यों उज्जवल होय ।।
प्रश्नोत्तर
तो पर बारी उरबसी , सुन राधिके सुजान ।
तू मोहन की उरबसी , ह्वै उरबसी समान।। इन पंक्तियों में कौन सा अलंकार है।
उत्तर – यमक अलंकार
उपमा
अनुप्रास
श्लेष
यमक
रूपक अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार
यमक अलंकार
(a)इसका मुख चन्द्रमा के समान है (b) चन्द्रमा इसके मुख के समान हैं (c) इसका मुख ही चन्द्रमा है (d) यह मुख है अथवा चन्द्रमा
उत्रर- c
अनुप्रास अलंकार
उपमा
अनुप्रास अलंकार
उत्प्रेक्षा अलंकार
विरोधाभास अलंकार
रूपक अलंकार
उत्प्रेक्षा
अनुप्रास अलंकार
अनुप्रास अलंकार
यमक
वर्णमाला तथा विराम चिन्ह संज्ञा सर्वनाम सन्धि समास अनेकार्थी शब्द विलोम शब्द रस छन्द अलंकार रूपक अलंकार, उपमा , उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, श्लेष अलंकार , परिभाषा भेद, प्रकार, important for CTET, UPTET, STET and other competitive exams. Class 8,9,10,11,12.