अब डर से ऊपर उठें। how to become fearless , भयमुक्त कैसे हों

अब डर से ऊपर उठें।

अब डर से ऊपर उठें हम सभी जीवन में कभी न कभी भयभीत हुए हैं। फिर वह अस्पताल में इंजेक्शन लगवाना हो या कॅरिअर तय करने के लिए प्रवेश परीक्षा देना हो ।
डर कई स्वरूपों में आता है। डर एक सार्वभौमिक मौलिक भावना है, जो हमारे जीवित रहने के लिए जरूरी है। यानी डर काफी हद तक जरूरी है।
डर मानसिक और भावनात्मक रूप से होता है। अतीत की बुरी यादों को लगातार याद करते रहने या भविष्य की आशंकाओं के बारे में लगातार सोचते रहने
से डर इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि वह जिंदगी से बड़ा हो जाता है । फिर डर आतार्किक होने लगता है । वह चिंता, तनाव और बुरी सेहत का कारण बनने
लगता है। समकालीन जीवन में व्याप्त भय कदर हावी हो गया है कि वास्तविक स्थिति की तुलना में हमें डर ज्यादा नुकसान पहुंचाने लगा है।
आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए डर इतनी हावी भावना हो गया है कि उनकी जिंदगी का मकसद सिर्फ इसका सामना करना रह गया है।
सार्थक जीवन जीने के लिए अपने डर से ऊपर उठना जरूरी है।यह मानना कि डर महज एक भावना है, यह सुनिश्चित करता है
कि हम इस भावना को बढ़ाएं नहीं। अक्सर खुद को सही जानकारी और आंकड़े देना तथा विषय पर विशेषज्ञता हासिल करने से डर को
दबाने की शक्ति और आत्मविश्वास मिलता है। मशहूर टोस्टमास्टर्स क्लब लोगों का सार्वजनिक मंच पर बोलने का डर दूर करने के लिए
संवेदनशीलता को व्यवस्थित ढंग से कम करने का काम करता है। तकनीक में समय के छोटे-छोटे हिस्सों में खुद को डराने वाली स्थिति
में डालना और धीरे-धीरे जोखिम समय बढ़ाना शामिल है। हर बार इससे हमारी तर्कसंगतता मजबूत होती है और आखिरकार हमारा दिमाग
तिल का ताड़ बनाना बंद कर देता है। डरते- डरते जीना, हर पल मरने जैसा है। इसलिए किसी भी परिस्थिति में, जब हम सबसे बुरी स्थिति
के बारे में सोचकर उसे मानसिक रूप से स्वीकार लेते हैं, तब हम अवसरों का पूरा लाभ उठाने में सक्षम हो जाते हैं।वैदिक दृष्टिकोण
हमें डर पर काबू पाने के लिए गहन अंतर्दृष्टि देता है। यह भय को गहरी बीमारी का लक्षण मात्र मानता है, यानी मन की आसक्ति और
आसक्ति के विषय से संभावित नुकसान । उदाहरण के लिए संपत्ति संपत्ति से आसक्ति या लगाव से गरीबी का भय पैदा होता है, सामाजिक
प्रतिष्ठा से आसक्ति के कारण बदनामी का डर पैदा होता है आदि। इसीतरह समृद्धि, आराम और अपनी खुद की जिंदगी से आसक्ति के कारण
प्राकृतिक आपदाओं का डर पैदा होता है। हम जानते हैं कि जीवन नश्वर है, फिर भी डरते हैं। हम यह ज्ञान भूल जाते हैं कि आत्मा अमर है।
ऐसे ज्ञान पर चिंतन हमें मृत्यु के भय से ऊपर उठने में मदद करता है।जब हम मानसिक रूप से अपने कंफर्ट जोन से आसक्त रहते हैं,
अपनी परिस्थितियों, हमारी जीवन योजनाओं के मन मुताबिक नतीजे चाहते हैं, तो डर इसका स्वाभाविक नतीजा होता है।
इनसे ऊपर उठने का एकमात्र तरीका है कि हम सर्वश्रेष्ठ करने पर ध्यान केंद्रित करें और किसी भी परिणाम को ईश्वर की
इच्छा के रूप वीकार करें। जब हम दिल से स्वीकारेंगे कि भगवान जो कुछ भी तय करते हैं, वह हमारे जीवन के लिए सबसे अच्छा है,
तब हम नदी की तरह बहना सीखेंगे तो परिणामों से आसक्ति खत्म होगी।यह मानना कि डर महज एक भावना है, यह सुनिश्चित करता है
कि हम इस भावना को अपने अंदर बढ़ाएं नहीं ।महाभारत युद्ध के दौरान, जब दादा भीष्म ने अर्जुन को मारने का संकल्प लिया था,
तो भगवान कृष्ण भी पांडव वंश के बाकी लोगों के साथ चिंतित हो गए थे। आधी रात में जब वे अर्जुन को सांत्वना देने गए,
तो अर्जुन खर्राटे ले रहे थे। जागने पर, अर्जुन ने समझाया कि जब भगवान स्वयं उनकी सुरक्षा के लिए इतने चिंतित थे,
तो उन्हें डरने का कोई कारण नहीं था। भय पर विजय पाने का सबसे सरल और शक्तिशाली साधन पूर्ण विश्वास है
कि ईश्वर और गुरु हमारे साक्षी और रक्षक हैं। जैसे-जैसे हम सर्वशक्तिमान के प्रति समर्पित होते जाते हैं, हमारे भय लुप्त हो जाते हैं।
हमारा केवल एक ही मन है। भय पर चिंतन की बजाय परमात्मा का चिंतन करें। अकेलापन, साथियों के दबाव, आर्थिक असुरक्षा
आदि से संबंधित आशंकाओं हमें मानसिक रूप से कमजोर करती हैं, जबकि ईश्वर पर ध्यान केंद्रित करने से हमारा उत्थान होता है ।
ईश्वर, दिव्य नामों, रूपों, गुणों, लीलाओं, निवासों या संतों का ध्यान करके अपने आप को भय से को दूर होने के लिए प्रेरित करें।

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