विजय जोशी
लेखक पूर्व ग्रूप महाप्रबंधक,भेल हैं।
विरासत पर गर्व हर कौम की पहचान है पर उससे सीख लेकर स्वयं का संवारना एक ज्वलंत तथा जागृत कौम की निशानी है। अमूमन महापुरूषों के वचन किताबों केपन्नो पर सिमटकर रह जाते हैं, उसकी चर्चा तो खूब होती है, पर विचार को व्यवहार में उतारने की ज़हमत कोई नहीं उठाता। चाणक्य उस दौर में पैदा हुए जब भारत बाहरी एवं भीतरी दोनों ओर से शत्रुओं से जूझ रहा था। उस कठिन दौर में साधारण बालक को शिष्य बनाकर दीक्षा देते हुए उच्चतम आसनपर स्थापित कर दिया। अहंकारी शासन का अंत कर दिया।चाणक्य ने सफलता के जिन सूत्रोंका महत्व प्रतिपादित किया, वे
इस प्रकार हैं:
1. किसी ने चाणक्य से पूछा
ज़हर क्या होता है। चाणक्य ने उत्तर दिया आवश्यकता से अधिक जिस किसी भी विषय वस्तु के प्रति मोह हो, वही है ज़हर। भले ही वह हो शक्ति, संपत्ति, भूख,अहंकार, लोभ, विलास, प्रेम, महत्वकाक्षा, घृणा या ऐसा ही अन्य हो।
2. और क्या है भय –
यह है अनिश्चित के प्रति अस्वीकार का भाव। यदि हमारा मानस अनिश्चित को सहज स्वीकारता है तो यह बन पाता है साहसिक जोखिम से एक विद्वान ने कहा है – हमारे सामने केवल दो ही विकल्प हैं। पहला या तो हम काल्पनिक के भय से ग्रस्त होकर जीवनगुजारें या फिर उसका बहादुरी से सामना करते हुए जीवन बिताएं।
3. ईष्या क्या है
– दूसरों की अच्छाई को अस्वीकार करना। यदि हम अच्छाई को स्वीकार करते हैं तो यह एक प्रेरणा में परिवर्तित हो जाती है। यदि ईश्वर तुम्हें कठिनाई की खाई में ढकेलता है तब केवल दो ही स्थिति उभरती हैं। पहली तो यह कि जब तुम गिरने लगो तो वह तुम्हें संभाल लेगा या फिर ऐसा न कर पाने की दशा में कैसे उड़ सके वह कला तुम्हें सिखा देगा।
4. क्रोध क्या है –
उन चीजों को अस्वीकार करना जो हमारे बस में नहीं। इसे स्वीकार करना की सीमा में आता है। लोग जीवनपर्यंत हमे पागल बना देने का प्रयास करेगें, अनादर करेंगे और दुर्व्यवहार करेंगे। उन्हें ईश्वर को संभालने दीजिये, क्योंकि उनके प्रति दुर्भावना आपके हृदय को भी खंड -खंड कर देगी।
5. घृणा क्या है –
किसी व्यक्ति को जैसा है, वैसा ही स्वीकार करना। यदि हम आदमी को बिना किसी शर्त के स्वीकार कर पाते हैं, तो वह प्रेम में हो जाता है। यह हमारी स्वीकार करने की क्षमता का सूचक है।