भाषा शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की भाष् धातु से हुई है । इसका अर्थ बोलना या कहना होता है। भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम होता है । ध्वनि , शब्द वाक्य और शब्द भाषा के अवयव हैं । हम ध्वनि वर्ण तथा शब्दों के रूप में ही सम्प्रेषण को पूर्ण कर सकते हैं , सम्प्रेषण की प्रक्रिया में शब्दों का अर्थ मूल रूप में ही सम्प्रेषण को पूर्ण कर सकते हैं । सम्प्रेषण की प्रक्रिया में शब्दों का अर्थ मूल रूप में सम्प्रेष्य होता है। इस प्रकार अभिव्यक्ति , सम्प्रेषण तथा अर्थ भाषा के व्यक्त रूप हैं। वस्तुतः भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य अपने भावों , विचारों तथा संवेदनाओं को सम्प्रेषित कर सकता है । हिन्दी भाषा का विकास तथा उद्भभव विभिन्न चरणों में हुआ। इसका विकास संस्कृत – पालि- प्राकृत-अपभ्रंश तथा हिन्दी है ।
NCF 2005 परिचर्चा
राष्ट्रीय परिचर्चा की रूपरेखा 2005 सुझाती है कि बच्चों के स्कूली जीवन को बाहर के जीवन से जोड़ा जाना चाहिए , यह विचारधारा जानकारी रटा देने का विरोध करती है
ध्वनि भाषा की सबसे छोटी इकाई है । इसे वर्ण भी कहते हैं। वर्ण का अपना कोई अर्थ नहीं होता । वर्णों के मेल (संयोग) से जिस सार्थक वर्ण समूह या ध्वनि समूह की सृष्टि होती है , उसे शब्द कहते हैं । शब्द और अर्थ का घनिष्ठ सम्बन्ध है । शब्द अर्थ से प्रथक नहीं रह सकता है । अर्थ के अभाव में कोई भी शब्द निरर्थक ध्वनियों का समूह मात्र रह जाता है ।
कामता प्रसाद गुरू के अनुसार , भाषा वह साधन है , जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों तक भली भाँति प्रकट कर सकता है तथा दूसरों के विचारों को भी स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है । भाषा का यह रूप उच्चारण या लिपि के माध्यम से सम्प्रेषित होता है । उच्चारण ध्वनि संकेत है, जो शारीरिक अवयवों के माध्यम से व्यक्त होता है । लिपि वह ध्वनि संकेत हैं जिसके द्वारा भाषा का प्रसार तथा संरक्षण संभव है। हिन्दी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है , जबकि यूरोपीय भाषाओं को रोमन अथवा ग्रीक लिपि में लिखा जाता है । भाषा वाक्य से स्वरूप ग्रहण करती है । वाक्य शब्दों से स्वरूप ग्रहण करते हैंं। वाक्य शब्द , ध्वनि तथा अर्थ द्वारा भाषा के भाषिक स्वरूप को सामने लाने का कार्य करता है ।
भारत में भाषा के तीन रूप विधमान हैं
- क्षेत्रीय बोलियाँ
- परिनिष्ठित भाषा
- राष्ट्रभाषा
क्षेत्रीय बोलियाँ
भाषा के जिस रूप का प्रयोग सामान्य जनता अपने समूह या घरों में करती है , उसे बोली करते है। भारत में 436 से अधिक बोलियाँ बोली जाती हैं। हिन्दी भाषा की 18 बोलियाँ होती हैं।
परिनिष्ठित भाषा
जब कोई बोली या भाषा व्याकरणिक ढाँचे में ढलकर एक व्यवस्थित रूप ग्रहण कर लेती है तो उसे परिनिष्ठित भाषा का दर्जा मिलता है । खडी बोली हिन्दी व्याकरणिक ढाँचे में ढलकर परिनिष्ठित हिन्दी के रूप में आज हमारे सामने है ।
राष्ट्रभाषा
किसी भी देश की परिनिष्ठित भाषा जब व्यापक रूप से बहुसंख्यक जनता के सांस्क्रतिक तथा राजनीतिक व्यवहार के भाषा रूप में सामने आती है , तो इसे राष्ट्रभाषा हिन्दी कहते है ।
राष्ट्रभाषा देश की जनता की जाग्रति से जुडकर व्यापकता ग्रहण करती है । भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है ।
स्थानीय सम्प्रेषण में भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बोलियाँ बोली जाती हैं । भारत में 436 बोलियाँ अस्तित्व में हैं । कुछ बोलियों ने अपनी व्यापकता और साहित्यिक चेतना के कारण परिनिष्ठित भाषा का रूप लिया है। इसके इस रूप में आने की प्रक्रिया में व्याकरण का महत्तम सहयोग रहा है । हिन्दी एक परिनिष्ठित भाषा है। यह खडी बोली का परिनिष्ठित रूप है , जिसने 10 वीं शताब्दी के बाद अपना रूप ग्रहण किया । हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा और राजभाषा है । इसके अन्तर्गत उत्तर भारत की बोलियाँ आती हैं जो हिन्दी की बोलियाँ कही जाती हैं।
भारत की राजभाषा हिन्दी है ।
हिन्दी भाषा का विकास ( hindi bhasha ka vikas )
हिन्दी को संस्कृत अथवा प्राकृत से निष्पण्ण माना जाता है। राहुल सांस्कृत्यायन ने हिन्दी को संस्कृत या प्राकृत से निष्पण्ण मानने पर प्रश्न क्या है , उनके अनुसार हिन्दी की बोलियाँ संस्कृत के समानान्तर लोक बोलियों में प्रचलित थीं , जो समय पाकर भाषा के रूप में अस्तित्व ग्रहण करने में सफल रहीं
हिन्दी का विकास आधुनिक आधुनिक आर्य भाषाओं के प्रभाव में हुआ । खडी बोली शौरसेनी अपभ्रंश से निष्प्रण हुई थी । यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश , दिल्ली , हरियाणा के वृहत्त क्षेत्र में बोली जाती थी। मुसलमानों के शासन प्रारम्भ होने के दौरान उन्हें एक ऐसी समग्र भारतीय भाषा की जरूरत महसूस हुई थी, जिसमें वह स्थानीय किसानों , व्यापारियों तथा अधिकारियों से सम्बन्ध कायम कर सकें । खडी बोली दिल्ली के आस – पास बोली जाने के कारण विकसित होने लगी , शासकीय संरक्षण पाकर इसका विकास हुआ , मुस्लिम रचनाकरों विशेषकर अमीर खुसरों ने इस भाषा में रचनाएं की तथा इसे हिन्दवी कहा । यही हिन्दवी कबीर , सूर तथा तुलसी की वाणी से मिलकर हिन्दी हो गयी हिन्दवी अथवा हिन्दी में खडी बोली के साथ ब्रजभाषा , अवधी , राजस्थानी आदि के शब्दों तथा रूपों का प्रयोग हुआ, जिसने क्रमशः हिन्दी को विकसित किया ।
ऐतिहासिक तथा भौगौलिक दृष्टि से हिन्दी की पाँच उपभषाएँ हैं । ये हैं – राजस्थानी हिन्दी , पश्चिमी हिन्दी , पूर्वी हिन्दी , बिहारी हिन्दी तथा पहाडी हिन्दी । इसके विस्तार तथा अन्तर्निहित बोलियाों को अग्रलिखित सारणी द्वारा समझा जा सकता है ।
हिन्दी की उपभाषाएं | बोलियां | बोले जाने वाले क्षेत्र |
राजस्थानी हिन्दी | राजस्थानी , मारवाडी , सिन्धी | राजस्थान , सिन्ध , मालवा अपभ्रंश– सौरसेनी |
पश्चिमी हिन्दी | ब्रजभाषा, खडी बोली ,हरियाणवी, कौरवी, | हरियाणा , उत्तरी मध्य प्रदेश , पश्चिमी उत्तर प्रदेश . दिल्ली अपभ्रंश– सौरसेनी |
पूर्वी हिन्दी | अवधी बघेली , छत्तीसगढी | मध्य-पूर्व उत्तर प्रदेश , पूर्वी मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ अपभ्रंश– अर्धमाग्धी |
बिहारी हिन्दी | भोजपुरी, मगही , मैथिली | बिहार , झारखण्ड अपभ्रंश– मागधी |
पहाडी हिन्दी | गढवाली , कुमाउँनी | उत्तराखण्ड , हिमाचल प्रदेश अपभ्रंश– सौरसेनी |
भाषा परिवर्तनशील एवं विकासोन्मुख होती है । भाषा के विकसित स्वरूप के दौर में साहित्यिक रचनाएं होती हैं । साहित्यिक भाषा का व्याकरणिक स्वरूप निर्धारित करना अनिवार्य हो जाता है ।
व्याकरण
व्याकरण वह प्रवृत्ति है , जिसके द्वारा भाषा का विश्लेषण तथा उसके मानक रूप को स्थिर किया जाता है। किसी भाषा के बोलने तथा लिखने के नियमों की व्यवस्थित पद्धति व्याकरण कहलाती है। इसके द्वारा शब्दों के रूपों तथा प्रयोगों को निरूपित किया जाता है। यह भाषा को शुद्द लिखने, उच्चारण करने तथा समझने का ज्ञान भी प्रदान करता है ।
हिन्दी व्याकरण संस्कृत – व्याकरण पर आधारित है, लेकिन इसे स्वतंत्र मानना अधिक समीचीन है क्योंकि इसकी विशेषताएं संस्कृत से अत्यधिक प्रथक् होने की प्रवृत्ति सामने लाती हैं। कामता प्रसाद गुरू तथा किशोरीदास बाजपेयी ने सबसे पहले हिन्दी व्याकरण को लिख हिन्दी भाषा को स्थिर तथा परिष्कृत करने का प्रयास किया । हिन्दी भाषा में तीन तत्वों के आधार पर अध्ययन की प्रक्रिया को स्वरूप प्रदान किया जाता है । ये है – वर्ण विचार , ध्वनि विचार तथा वाक्य विचार.
भारोपीय
हिन्दी
अपभ्रंश से
तेलगू
काव्यभाषा
राजभाषा
पूर्वी राजस्थान की
पुरानी बांग्ला
मराठी
अवधी
पालि
ब्राम्ही लिपि
हिन्दी भाषा किस लिपि में लिखी जाती है ?
देवनागरी
खडी बोली
पूर्वी हिन्दी
बघेली
बघेली
343-351
चेन्नई
पालि— प्राकृत ——अपभ्रंश—— हिन्दी
हिन्दी के विकास के लिए निर्देश
पश्चिमी हिन्दी
बिहारी
शौरसेनी
1956
बिहारी
शौरसेनी
1956
आन्ध्रप्रदेश
पूर्वी हिन्दी
14 सितम्बर 1948 ई
14 सितम्बर 1949 ई
श्लिष्ट योगात्मक
द्रविड भाषा परिवार से
संस्कृत
पाँच
पूर्वी राजस्थान की
14 सितंबर
परिनिष्ठित भाषा को
जटिलता से सरलता की ओर
अवधी
ब्रजभाषा
बालगंगाधर खेर
शब्द
शौरसेनी अपभंश
भाषा पैत्रक सम्पत्ति होती है
बोली
मारवाडी , बुन्देली मेवाती मालवी
उत्तर बुन्देली
विधापति
बिहार
बुन्देली
पूर्वी हिन्दी
छत्तीसगढी
5
पश्चिमी हिन्दी
अवधी
बघेली
शौरसेनी से
ब्राचड से
पश्चिमी हिन्दी से
बिहारी
अर्धमाग्धी
मगही
भारोपीय
मागधी अपभ्रंश से
राजस्थानी हिन्दी
पश्चिमी शौरसेनी अपभ्रंश
पूर्वी हिन्दी
गुजरात
11
अनुच्छेद 343
धारा 343 i
अनुच्छेद 343
हिन्दी भाषा के विकास सम्बन्धित निर्देश
ब्राम्ही से
सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि होना , एक ध्वनि के लिए एक संकेत होना ।
a विकास की दृष्टि से यह लिपि ब्राम्ही एवं खरोष्ठी की समकालीन है
अक्षरात्मक
तत्कालीन उपराष्ट्रपति डा सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने
आचार्य नरेन्द्र देव
सुनीति कुमार चटर्जी
गुरूमुखी
सहजता
ब
तिलक फांट
अनुस्वार
1966
1967
जी बी पंत
22
संस्कृत
भोपाल
भाषा परिचय व्याकरण , हिन्दी का विकास , भाषा के रूप , वर्ण , ध्वनि शब्द , देवनागिरी लिपी , राष्ट्रभाषा उपभाषाएं बोलियाँ बोले जाने वाले क्षेत्र .