आलस और काम करने में टाल-मटोल करने की आदत कैसे सुधारा जाए

नुकसान दायक है टालमटोल की प्रवृत्ति (Just Do it Later)

उत्कृष्ट श्रेणी के असफळ व्यक्ति समस्यों को टालते रहते हैं, जिम्मेदारी कतराते हैं और हमेशा खुद को पुचकारते रहते हैं। हर दिक्कत को नजरअंदाज करने की कोशिश करते हैं।

थोड़ा सा काम करते ही सोचते हैं चलो यार, थोड़ा सा आराम कर लो। बहुत मेहनत हो गयी।

स्वयं को सहलाते हैं, भले ही काम कितना ही छोटा क्चों न हो । ऐसे लोग होते हैं स्वभाव से सुस्त या जानबूझकर सुस्त।

स्वभाव से सुस्त – इन लोगों का मानना है मेहनत करके भी क्या होगा। इनके लिए रात-दिन काम

करना बेवकूफी होती है । ये कभी अपना कमरा साफ नहीं करते । कभी अपने जीवन को सुनियोजित ढंग

से जीने की कोशिश नहीं करते । कभी इन्हें किसी काम को करने की जल्दी नहीं होती।

जान-बूबझकर सुस्त- ऐसे लोग यह सोचते हैं कि सब्जी लाना, बच्चे का ध्यान रखना या बिल जमा करना उनके

स्तर का काम नहीं है . ये महत्वाकांक्षी होते हैं लेकिन अनुशासनहीन होते हैं ये आखिरी क्षणों

में काम करने में विश्वास करते हैं और वह भी उन क्षेत्रों में जो उनकी रूचि का हो । वर्ना वे अपना वोझ झटकने की कोशिश करते रहते हैं।

सुमित रात भर जागकर क्रिकेट का मैच देख सकता है फिर सुबह उठकर क्रिकेट खेलना जा सकता है । उससे भरी दोपहरी में नया बैट खऱीदवा लीजिए जिसकी जरूरत उसे शायद शाम को पड़ेगी लेकिन वह कभी भी पढने के लिए सुबह उठनें को तैयार नहीं होगा। अगर हम दोपहर में उसे बाहर किसी काम से जाने को कहें. तो कहेगा-बाहर बहुत धूप है । मैं बाजार तो जाने वाला नहीं हूँ। —-एक पिता के विचार

उत्कृष्ट श्रेणीके असफळ व्यक्ति अक्सर असफळता के भय को कारण चीजों को टालते हैं। वे महसूस करते हैं अगर उन्होने कुछ किया और काम बिगड़ गया तो …..अगर वह कुछ करेगें ही नहीं तो कुछ बिगड़ेगा भी

नहीं . लिहाजा वह जिन्दगी भर चीजों को टालते रहते हैं।

उनके प्रिय वाक्य हैं-

यार वक्त कहां है ।

मेरे पास इन फिजूल चीजों के लिए समय नहीं है

मुझे आराम की जरूरत है ।

आज दिन भर बहुत मारामारी रही।

यार मेरे पास बहुत काम है ।  

बाद में देखा जायेगा।

आप यकीन नहीं करेंगें


अमेरिका में एक टालमटोल करने वालों का टालू क्लब है जिसे लेसवास ने 1956 में बनाया था। वैसै वह चीजों को टालने की काल में महारत हासिल करने की कोशिश पहले से कर रहा था. इस क्लब ने 1812 में हुई एक लड़ाई के विरोध में 1950 में एक प्रदर्शन का आयोजन किया था. इसके सदस्य एक बार जहाज में बैठकर इंग्लैंड गए और वहां उन्होने व्हाइट चैपल कारखाने से लिबर्टी बेल बनाने कि लिए दिया गया पैसा वापस मांगा क्योंकि लिबर्टी बेल में दरार पड़ गई थी. घंटा बनाने वाले ने पैसा वापस देन तो स्वीकार कर लिया लेकिन घंटा जिस पैंकंग में शुरु में भेजा गया था, उसे भी वापस मांगा।

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