कल्पना करिए कि आपके पास दो तरफा दर्पण (टू वे मिरर) है। मतलब आप उसके आरपार भी देख सकते हैं और अपना अक्स भी दे सकते हैं। अब निर्णय आप पर है कि उसके साथ क्या करना चाहते हैं। बुद्धिस्ट साधू मैथ्यू रिकार्ड कहते हैं कि खुद से बाहर खुशी की तलाश करना मतलब किसी अंधेरी गुफा में सूरज की रोशनी का इंतजार करने जैसा है। खुशी पूरी तरह अंदरुनी मामला है,
अगर यह बाहरी होती, तो फिर ये हमेशा ही हमारी पहुंच से बाहर होती। हर कोई खुश रहना चाहता है, लेकिन चाहने और होने में फर्क है। हम कष्ट और दुख से डरते हैं, लेकिन जाने-अनजाने उसी ओर खिंचे चले जाते हैं। हमारी इच्छाएं भी अनंत हैं, पर इस दुनिया और चीजों परनियंत्रण बहत मामूली सा है।
सवाल है कि जब हम जिंदगी का अच्छा खासा वक्त बाहरीकारकों के लिए खर्च कर देते हैं। स्कूल, फिर कॉलेज, नौकरी, शादी, परिवार.. लेकिन आंतरिक परिस्थितियों को बेहतर करने का जरा-सा भी प्रयास नहीं करते। अपने अंदर |झांकने की ये कला हम सबको सीखनी चाहिए। दलाई लामा कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति खुश नहीं है तो नई चमाचमाती हुई इमारत के 1ooवें माले पर वह खिड़की से कूदने का ही विचार कर सकता है, उसे वहां को खूबसूरतो नहीं दिखेंगो। जब जिंदगी में उथल-पुथल चल रही होती है, हम कामचलाऊ या तात्कालिकउपाय खोजते रहते हैं।
यही आदत जिंदगी बन जाती है। धन, आनंद, पद, प्रतिष्ठा, ताकत की सबको चाहत होती है। लेकिन इन्हेंपाने की प्रक्रिया में हम अपना मूल लक्ष्य भूल जाते हैं और इन साधनों की पीछा करते हुए अपना वक्त बिताते हैं। खुशी के कई फॉर्मूला बताते हैं वकि हमारा स्वभाव धूप-छाया की तरह है और अपनी अच्छाइयों के साथ-साथ कमियों को भी स्वीकार करना चाहिए। अपनी क्षमताओं और सीमाओं से चल रहा हमारा झगड़ा अगर हम रोक दें, तो अपने अंतर्द्ं्और विरोधाभासों को खत्म करते हैं।
इसके लिए आप धैर्यं और सहनशीलता का अभ्यास करें।
-मैथ्यू रिकार्ड की किताब हैप्पीनेस ए गाइड से साभार