शिष्यों की अंतिम परीक्षा Hindi story of a ancient school

अंतिम दौड़

एक प्रसिद्ध ऋषि गुरुकृल में बालकों को शिक्षा दान

किया करते थे. उनके गुरुकूल में अनेक राज्यों के

राजकुमारों के साथ-साथ साधारण परिवारों के बालक

भी शिक्षा प्राप्त करते थे. उस दिन वर्षों से शिक्षा प्राप्त कर

रहे शिष्यों की शिक्षा पूर्ण हो रही थी और सभी बड़े ही

उत्साह से अपने- अपने घर लौटने की तैयारी में थे. जाने

के पूर्व ऋषिवर ने सभी शिष्यों को अपने पास बुलाया. सभी Shishya उनके समक्ष आकर एकत्रित हो

गए. ऋषिवर सभी बालको को संबोधित करते हुए बोले, ‘प्रिय शिष्यों, आज आप सबका इस गुरुकृल

में अंतिम दिनहै. मेरी इच्छा है कि यहां से प्रस्थान करने के पूर्व आप सब एक दौड़ में सम्मिलित हों.

ये एक बाधा दौड़ है जिसमें आपको विभिन्न प्रकार की बाधाओं का सामना करना होगा. आपको कहीं

| कूदना होगा तो कहीं पानी में दौड़ना होगा. सारी बाधाओं को पार करने के उपरांत अंत में आपको

एक अंधेरी सुरंग मिलेगी जो आपकी अंतिम बाधा होगी. उस सुरंग को पार करने के उपरांत ही

आपकी दौड़ पूर्ण होगी. तो क्या

आप सब इस दौड़ में सम्मिलित

होने के लिए तैयार है?’

‘ हम तैयार है’, सभी शिष्य एक स्वर में बोले.

दौड़ प्रारंभ हुई. सभी तेजी से भागने

लगे. समस्त बाधाओं को पार करने

के उपरांत वे अंत मैं सुरंग में पहुंचे. सुरंग में बहुत अंधेरा था. जब शिष्यों ने सुरंग में भागना प्रारंभ

किया तो पाया कि उसमें जगह-जगह नुकीले पत्थर पड़े हुए हैं. वे पत्थर उनके पांव में चुभने लगे

और उन्हें असहनीय पीड़ा होने लगी लेकिन जैसे-तैसे दौड़ समाप्त कर वे सब वापस ऋषिवर के

समक्ष एकत्रित हो गए. ऋषिवर के उनसे प्रश्न किया, “शिष्यों, आप सबमें से कुछ लोंगों ने दौड़ पूरी

करने में अधिक समय लिया और कुछने कम. भला ऐसा क्यों ?’ उत्तर में एक शिष्य बोला, ‘गुरुवर!

हम सभी साथ-साथ ही दौड़ रहे थे लेकिन सुरंग में पहुंचने के बाद स्थिति बदल गई. कुछ लोग

दूसरों को धक्का देकर आगे निकलने में लगे हुए थे तो कुछ लोग संभल -संभलकर आगे बढ़ रहे थे.

|कुछ तो ऐसे भी थे जो मार्ग में पड़े पत्थरों को उठाकर अपनी जेब में रख रहे थे ताकि बाद में आने

|वालों को कोई पीड़ा न सहनी पड़े.इसलिए सबने अलग -अलग समय पर दौड़ पूरी की. ‘पूरा वृत्तंत

सुनने के उपरांत ऋषिवर ने आदेश दिया, ‘ठीक है. अब वे लोग सामने आएं जिन्होंने मार्ग में से पत्थर

उठाये और वे पत्थर मुझे दिखायें. “आदेश सुनने के बाद कुछ शिष्य सामने आये और अपनी जेबों

से पत्थर निकालने लगे लेकिन उन्होंने देखा कि जिसे वे पत्थर समझ रहे थे, वास्तव में वे बहुमूल्य

हीरे थे. सभी आश्चर्यचकित होकर ऋरषिवर की ओर देखने लगे. ‘मैं जानता हूं कि आप लोग इन

हीरों को देखकर अचरज में पड़ गए हैं. “ऋषिवर बोले, ‘इन हीरों को मैंने ही सुरंग में डाला था. ये

हीरे उन शिष्यों को मेरा पुरुस्कार है जिन्होंने दूसरों के बारे में सोचा. शिष्यों यह दौड़ जीवन की

भागमभाग को दर्शाती है जहां हर कोई कुछन कुछ पाने के लिए भाग रहा है किन्तु अंत मैं समृद्ध वही

होता है जो इस भागमभाग में भी दूसरों के बारे में सोचता है और उनका भला करता है.

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