एक बार एक लड़का परीक्षा में फेल हो गया. साथियों ने उसके फेल होने का खूब मजाक बनाया. वह सहन नहीं कर पाया और घर लौटकर तनाव में डूब गया.
उसके माता-पिता ने उसे बहुत समझाया कि बेटा, फेल होना इतनी बड़ी असफलता नहीं है कि तुम इतने परेशान हो जाओ और आगे के जीवन पर प्रश्नचिन्ह लगा बैठो.
जब तक इंसान अच्छे-बुरे, सफलता-असफलता के दौर से खुद नहीं गुजरता, तब तक वह बड़े काम नहीं कर सकता. लेकिन उसे उनकी बातों से संतुष्टि नहीं हुई.
अशांति और निराशा में जब उसे कुछ नहीं सूझा तो रात में वह स्वयं को समाप्त करने लिए चल दिया. रास्ते में उसे एक बौद्ध मठ दिखाई दिया.
वहां से कुछ आवाजें आ थीं. वह उत्सुकतावश बौद्ध मठ के अंदर चला गया. वहां उसने सुना कि एक भिक्षुक कह रहा था, पानी मैला क्यों नहीं होता ?
क्योंकि वह बहता है. उसके मार्ग में बाधाएं क्यों नहीं आतीं ? क्योंकि वह बहता रहता है. पानी
की एक बूंद झरने से नदी, नदी से महानदी और फिर समुद्र क्यों बन
जाता है? क्योंकि वह बहता है. इसलिए मेरे जीवन, तुम रुको मत, बहते रहो. कुछ असफलताएं आती हैं, पर तुम उनसे घबराओ मत.
उन्हें लांघकर मेहनत करते चलो. बहना और चलना ही जीवन है. असफलता से घबराकर रुक गए तो
उसी तरह सड़ जाओगे जैसे रुका हुआ पानी सड़ जाता है. यह सुनकर लड़के ने मन में यह ठान लिया कि उसे भी बहते जल की तरह बनना है.
इसी सोच के साथ वह घर की ओर मुड़ गया. अगले दिन वह सामान्य होकर स्कूल की ओर चल दिया. बाद में वह वियतनाम के राष्ट्रनायक हो ची मिन्ह के नाम से जाना गया.
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सीख- असफलता, सफलता की सीढ़ी है. हिम्मत न हारें, हमेशा आगे बढ़ते रहें.