संवेग का अर्थ, प्रकृति, संवेग कितने प्रकार के होते हैं। बाल विकास तथा बाल मनोविज्ञान

संवेग कितने प्रकार के होते हैं । बाल मनोविज्ञान

समायोजन एडजस्टमेंट

समायोजन 7 चरणों में होता है , इसके 7 चरण निम्नवत् हैं।

  1. प्रथम चरण– उत्तेजना का अनुभव होना
  2. द्वितीय चरण मानसिक द्वंद होना
  3. तृतीय चरण मानसिक तनाव होना
  4. चतुर्थ चरण तनाव के लक्षण प्रकट होना
  5. पंचम चरण प्रयत्न करना
  6. षष्टम चरण– मुक्ति
  7. सप्तम चरण – समायोजन करना

कॉल मार्क “द्वंद एक ऐसी स्थिति है जिसमें ऐसे विरोधी प्रेरक सक्रिय हो जाते हैं जिसमें सभी को पूरा नहीं किया जा सकता ।”

Emotional Development of child-

Canonward- संवेग वास्तव में मानसिक उपद्रव की अवस्था है



संवेग का तात्पर्य उत्तेजना देता भागों में उथल-पुथल। 
 
संवेग एक भावनात्मक मानसिक क्रिया है जो शारीरिक परिवर्तन के रूप में दिखाई देती है।

वुड वर्थ- संवेग व्यक्ति के गति में अथवा आवेग में आने की स्थिति है।



रास- संवेग चेतना की व्यवस्था है जिसमें रागात्मक तथ्य की अधिकता रहती है ।


 संवेग की विशेषताएं

  • संवेग व्यापक होते हैं अर्थात यह सभी प्राणियों में पाए जाते हैं तथा सभी प्राणियों में इनकी प्रबलता भिन्न होती है।
  • संवेदनशील होते हैं अर्थात यह कुछ समय के लिए आते हैं बाद में स्थानांतरित हो जाते हैं संवेग व्यक्तिगत होते हैं संवेगों की क्रियात्मक प्रवृत्ति होती है।
  • संवेगों की उत्पत्ति मूल प्रवृत्तियों से होती है।


संवेग से दो परिवर्तन होते हैं 

आंतरिक परिवर्तन

वाह् परिवर्तन 
आंतरिक परिवर्तन सबसे तेज गति हृदय गति वढ़ना पाचन क्रिया प्रभावित होना।
वाह्य परिवर्तन। – मुख्य मंडल का बदलाना,  अंग संचालन बढ़ना , आवाज भारी

शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास-

जन्म के समय-  उत्तेजना 
3 माह के बाद – उत्तेजना आनंद कष्ट
6 माह के बाद- उत्तेजना आनंद कष्ट क्रोध घृणा भय
12 माह के बाद उत्तेजना आनंद कष्ट स्नेह उल्लास
18 माह बाद ईष्या का उत्पन्न होना।

फ्राइड ने मनोग्रंथियां

Oedipus complex – पितृ विरोधी , मा से प्रेम
Electra complex- मात्र विरोधी, पिता से प्रेम

बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास-

  1. जिज्ञासा की अधिकता 
  2. संवेगो की उग्रता में कमी।
  3. ईष्या
  4.   क्रोध 
  5. भय

संवेगात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

  1. स्वास्थ्य
  2.   वंशानुक्रम
  3.   थकान 
  4. मानसिक योग्यता
  5. परिवार व विद्यालय का वातावरण

संवेग नियंत्रण की विधियां

1.  शोधन – अवंती संवेग को परिमार्जित कर के सकारात्मक दिशा प्रदान की जाती है।
2. अध्यव्यवसाय- संवेगों को वशीभूत कर के किसी कार्य में जोड़ा जाए।
3. रेचक विरेचन- संवेगों को आने से रोका जाए जबकि संवेगों की अभिव्यक्ति के लिए पर्याप्त अवसर दिए जाएं।
4. अरस्तु का विरेचन सिद्धांत दिया कहता है कि संवेगों को दमन करने की योग्यता को बढ़ाया जाए।

संवेग से संबंधित सिद्धांत-जेम लेंज तथा जेम्स लेंगी का सिद्धांतयह सिद्धांत स्वीकार करता है कि व्यक्ति संवेगात्मक व्यवहार पहले करता है तथा बाद में संवेगात्मक अनुभूति करता है।

Ex- बच्चा भालू को देखकर पहले भागता है फिर डरता है।

कैनन वर्ल्ड का सिद्धांत

इसके प्रतिपादक वाल्टर कैनन तथा फिलिप वार्ड थे या सिद्धांत जेम्स लेंज के सिद्धांत के विपरीत है अर्थात संवेगात्मक अनुभूति पहले बाद में संवेगात्मक व्यवहार करता है,  इसे हाइपोथैलेमिक सिद्धांत भी कहते हैं।उदाहरण- बच्चा बाघ को देख कर पहले डरता है फिर बाद में भागता है।

अधिगम   भाषा विकास का सिद्धान्त मूल प्रवत्तियाँ     संवेग

NCF FRAMEWORK     बाल मनोविज्ञान के प्रश्न

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!