अपनी ऊर्जा स्वयं पर केन्द्रित करो देखो क्या चमत्कार होगा

स्वयं पर केंद्रित करो अपनी पूरी ऊर्जा

कृपया दूसरों का निरीक्षण करने का प्रयत्न मत करो –उससे तुम्हारा कुछ लेना-देना नहीं है। यदि उन्होंने पुराने खेल खेलने का निर्णय लिया है, यदि वे अपने पुराने खेल खेलने से प्रसन्न हैं, यदि वे पुराने खेल खेलना चाहते हैं, तुम हस्तक्षेप करने वाली होती कौन हो? तुम निर्णय लेने वाली भी तुम कौन होती हो ?

दूसरों के विषय में निर्णय लेने की यह सतत अभिलाषा छोड़नी होगी। यह दूसरों की सहायता नहीं करती। हां, तुम्हें हानि जरूर पहुंचाती है, तुम्हें क्यों चिंतित होना चाहिए? उसका तुमसे कुछ लेना-देना नहीं है। यह तो दूसरों की अपनी खुशी है, यदि वे वही पुराने बने रहना चाहते है, यदि वे उसी दलदल में, उसी दिनचर्या में बने रहना चाहते हैं। तो अच्छा है! यह उनका जीवन है और उन्हें इसे अपने ही ढंग से जीने का पूरा अधिकार है।

कुछ ऐसी बात है कि हम औरों को उनके अपने ढंग से जीने नहीं देते। किसी न किसी तरह हम निर्णय लिए चले जाते हैं। कभी हम कहते हैं वे सब पापी हैं, कभी हम कहते हैं वे नरक जाएंगे, कभी हम उन्हें अपराधी कहते है, कभी यह, कभी वह। यदि यह सब बदल गया है तो एक नया मूल्यांकन कि, वे वही पुराने खेल-खेल रहा है, और ‘मैं थक गई हूं।’ उनके खेलों से तुम्हें क्यों थकना चाहिए? यदि वे चाहें तो उन्हें अपने खेलों से थकने दो, या यदि वे न चाहे तो भी यह उनका ही चुनाव है। कृपया दूसरों को मत देखो।

तुम्हारी समस्त ऊर्जा तुम्हारे स्वयं के ऊपर केंद्रित होनी चाहिए। हो सकता है कि तुम दूसरो की, उनके पुराने खेलो के लिए निंदा मात्र एक तरकीब के रूप में कार्य कर रही हो,

क्योंकि तुम स्वयं की निंदा नहीं करना चाहती। यह सदा होता है, यह एक मनोवैज्ञानिक तरकीब है; हम दूसरों का प्रक्षेपित करते हैं। एक चोर सोचता है कि हर कोई चोर है–उसके लिए यह सोचना बहुत स्वभाविक है, उसके अहंकार को बचाने का यही उपाय है। यदि वह महसूस करे कि सारी दुनिया ही बुरी है, उनकी तुलना में वह अपने आप को अच्छा अनुभव करता है।

उसे अपनी अंतरात्मा पर कोई बोझ रखने की आवश्यकता नहीं रह जाती। इसलिए जो हम स्वयं में नहीं देखना चाहते उसे दूसरों में प्रक्षेति किए चले जाते हैं। कृपया इसे बंद करो! यदि सच में ही तुम पुराने खेलों से थक गई हो, तब यही पुराना खेल है– सबसे पुराना।

कई जन्मों से तुम यह खेल खेलती आ रही होः अपने दोष दूसरों के ऊपर प्रक्षेपित करना और फिर अच्छा महसूस करना। और निश्चय ही, तुम्हें बढ़ा-चढ़ा कर देखना होगा, तुम्हें अतिशयोक्ति करनी होगी । यदि तुम एक चोर हो, दूसरों की प्रतिमाओं को बड़ा करना होगा। कि वे तुमसे भी बड़े चोर हैं। तब तुम अच्छा महसूस करते हो, तुम तो एक बेहतर इंसान हो।

यही कारण है कि लोग समाचार पत्र पढ़ते रहतें हैं। और ये समाचार पत्र समाचार जैसा कुछ भी नहीं है, कुछ नया लाता ही नहीं। वही पुरानी सड़ी-गली बातें होती हैं। मगर तुम अच्छा महसूस करते हो: कहीं, किसी कि हत्या हो गई है,.. वगैरा वगैरा। यह देख कर तुम विश्रांत हो. जाते हो, तुम महसूस करते हो! ‘तो मैं ही अकेला” खराब नहीं हूं, सारी दुनियां ही बदतर है।

मैं तो फिर भी बहुत अच्छा हूं। तुम अच्छा महसूस करते हो। और जिस क्षण तुम अच्छा महसूस – करते हो, तुम वही बने रहते हो कृपया दूसरों का निरीक्षण मत करो। इससे तुम्हें कोई सहायता नहीं मिलेगी। तुम अपनी ऊर्जा, अपना निरीक्षण अपने ही ऊपर प्रयोग करो। और निरीक्षण में कुछ बड़ा रूपांतरित करने वाली बात है। एक दिन अचानक तुम पाओगे कि इसमें इतनी ऊर्जा ने रही जितनी कि पहले हुआ करती थी

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