अक्षांश एवं देशान्तर

विश्व का भूगोल (अक्षांश एवं देशान्तर)


अक्षांश एवं देशान्तर

  • अक्षांश रेखाओं की कुल संख्या 180 है) ये ग्लोब पर पूर्व से पश्चिम की
    ओर खींची गई काल्पनिक रेखाएँ हैं।
  • अक्षांश रेखाएँ, एक-दूसरे के समानान्तर होती हैं तथा भूमध्य रेखा से उत्तर
    या दक्षिण जाने पर इनकी लम्बाई कम होती जाती है।
  • क्षांश रेखा को भूमध्य रेखा या विषुवत रेखा (Equator) कहते हैं।
    23.5° – उत्तरी अक्षांश रेखा को कर्क रेखा (Tropic of Cancer) कहते हैं।
    23.5°- दक्षिणी अक्षांश रेखा को मकर रेखा (Tropic of Capricorn)
    कहते हैं।
    एक अक्षांश रेखा से दूसरी अक्षांश रेखा के बीच (111 किमौ की दूरी
    होती है।
    देशान्तर रेखाएँ ग्लोब पर उत्तर से दक्षिण खींची गई काल्पनिक रेखाएँ हैं।
    इनकी संख्या 360 है।
    0° अक्षांश रेखा पृथ्वी को दो बराबर भागों में बाँटती है, जबकि सभी
    देशान्तर रेखाएँ पृथ्वी को बराबर भागों में बाँटती हैं।
    देशान्तर रेखाओं के बीच, 111.82 किमी का अन्तर होता है।
    देशान्तर रेखाओं से समय का निर्धारण किया जाता है जबकि अक्षांश
    रेखाएँ कटिबन्धों एवं ऋतुओं के निर्धारण में सहायक हैं।
    1 देशान्तर की दूरी तय करने में पृथ्वी को 4 मिनट का समय लगता है।
    180° देशान्तर रेखा को अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा कहा जाता है।
    0° देशान्तर रेखा को ग्रीनविच रेखा या प्रधान याम्योत्तर रेखा भी कहा जाता
    है। यह लन्दन के ग्रीनविच से होकर राजरती है।
    19 पुवी देशान्तर पर स्थित है। यह भारत का मानक समय (IST 82.5 के
    इलाहाबाद के नैनी के पूर्व एवं मिजीपुर के पश्चिम से होकर गुजरता है।
    रूस में 11 (सर्वाधिक), अमेरिका में 7 तुथा ऑस्ट्रेलिया में 3 टाइम
    जोन है।

मैण्टल पृथ्वी की आन्तरिक संरचना


पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के विषय में जानकारी, भूकम्पी तरंगों, ताप एवं दाब से
होती है। पृथ्वी के आन्तरिक भाग को तीन भागों में विभाजित किया गया है

कोर (क्रोड़)

भू-पर्पटी


भू-पर्पटी.इसे भू-पटल या क्रस्ट भी कहते हैं।
• यह सिलिका एवं एल्युमीनियम से निर्मित है इसलिए इसे सियाल (SIAL) भी कहते


मैण्टल

इसे मध्यवर्ती परत भी कहते है।
• यह सिलिका एवं मैग्नीशियम से निर्मित है इसलिए इसे सीमा (SIMA) भी कहते
कोर

यह पृथ्वी की आन्तरिक परत है।
इसका निर्माण निकिल एवं लोहे से हुआ है इसलिए इसे निफे (NIFE) भी कहते हैं।
• पृथ्वी का औसत धनान 55 ग्राम/सेमी है।
• पृथ्वी के अन्दर जाने पर गहराई के साथ तापमान में वृद्धि होती जाती है।

पृथ्वी के भू-पृष्ट (भू-पर्पटी) में ऑक्सीजन 468% सिलिकॉन 27.7%, एल्युमीनियम 818
लोहा 50% वैल्शियम 36% तथा सोडियम 28%
पाया जाता है।
• सम्पूर्ण पृथ्वी में सर्वाधिक मात्रा में लोहा पाया जाता है।


पर्वत


.पृथ्वी की सतह पर प्राप्त वे ऊँचे उठे हुए स्थल जिनका ढाल तीव्र व शिखर-आ
संकुचित होता है तथा जिनकी ऊँचाई 1000 मीटर से अधिक हो, उन्हें ‘पर्वत का
जाता है।

उत्पत्ति के आधार पर पर्वत चार प्रकार के होते हैं

1. वलित या मोड़दार पर्वत

2. ब्लॉक पर्वत

3. ज्वालामुखी पर्वत

4.अवशिष्ट पर्वत

अप्लेशियन, पेनाइन, अरावली आदि प्राचीनतम पर्वत हैं। हिमालय, आल्पस, यूराल, रॉकी, एण्डीज आदि मोड़दार या वलित पी। उदाहरण है।

दूरी

• (म्यूजीवामा (जापान) तथा कोटोपैक्सी (इक्वाडोर) संगृहीत पर्वत है।
जर्मनी का ब्लैक फॉरेस्ट ब्लॉक पर्वत का उदाहरण है।

अवशिष्ट पर्वत के उदाहरण हैं-अरावली, विन्ध्याचल, सतपुड़ा इत्यादि।

• माउण्ट एवरेस्ट विश्व की सबसे ऊँची चोटी है। इसकी ऊँचाई 8848 मीटर है।
.K-2 गॉडविन ऑस्टन (8611 मीटर) विश्व की दूसरी सबसे ऊंची चोटी तक्षा
सोंच्छ चोटी है।

लम्बाई के अनुसार पर्वतों का काम
सभी
नेपाल-तिब्बत सीमा पर स्थित है।

विश्व के महासागर
पृथ्वी पर विस्तृत जलीय भाग को जलभण्डल कहा जाता है।
सम्पूर्ण पृथ्वी के 77% भाग पर
जलमण्डल का विस्तार है।
इसके अन्तर्गत महासागर, सागर, नदियाँ, जलसन्धियाँ एवं
झोले आदि शामिल हैं।

महासागर
क्षेत्रफल (वर्ग किमी में) सर्वाधिक गहरा स्थान (मीटर में)

मेरियाना गर्त (11033)

अटलाण्टिक महासागर
पोटारिको गर्त (9219)

हिन्द महासागर
जावा गर्त (7725)

अण्टार्कटिक महासागर
प्रमुख सागर
क्षेत्रफल (वर्ग किमी में) गहरा स्थान (मीटर में)

दक्षिणी चीन सागर
वेस्ट ऑफ न्यू जोन
भूमध्यसागर

बुल्डिर द्वीप
कैरीबियन सागर 1943000
केमन द्वीप
जापान सागर

•सारगैसो सागर उत्तरी अटलाण्टिक महासागर में स्थित है।
सागरीय जल की लवणता में सोडियम क्लोराइड (NaCl) का अधिकतम योगदान है।
महासागरों की औसत लवणता 35% है।

विश्व का सबसे गहरा समुद्री गर्त मैरियाना या चैलेंजर गर्त है, जो प्रशान्त महासागर
महासागरीय जीव
• महासागरों में पाए जाने वाले जीव दो प्रकार के होते हैं–पौधे तथा प्राण

समुद्र में केवल आदिम समूह थैलोफाइटा (Thallophyta) और
आवृतबीजी (Angiosperm) पौधे ही पाए जाते हैं। समुद्रों में मॉस तथा एक
(Moss and Ferm)
बिल्कुल नहीं पाए जाते हैं। अधिकांश समुद्री गधा
भूरे तथा लाल शैवाल (Algae) है। शैवाल आधार से संलग्नक द्वारा रा
है। ये 50 मीटर से कम की गहराई में पाए जाते हैं।
समुद्री पौधों में अपना
जड़े तथा वाहिनीतन्त्र नहीं होते हैं, अत: ये पौधे अपनी सामान्य सतह से।
अवशोषित करते हैं।
इन पौधों में जनन सूक्ष्म बीजाणुओं (Sperst होता है।
समुद्री प्राणियों द्वारा संलग्न पौधों का उपयोग खाद्य पदार्थ के सपा
जाता है।
प्रमुख खाद्य सामग्री के रूप में सूक्ष्म उत्प्लावक, डायटम (D
पादप समभोजी (Holophytes)
तथा (Dinoflagellates) ही प्रयुक्त होते हैं,
क्योंकि ये अत्यधिक संख्या जाते हैं। इनका जनन भी सरलता से होता है। समुद्र में जीवाणुओं 100 की संख्या भी अत्यधिक होती है, परन्तु इनका महत्त्व केवल कावनिक
के क्षय (Decay) तक ही सीमित है। समुद्र में प्राणिजगत् का असाधारण विकास हुआ है।
लगभग सभी बात प्रतिनिधि और कुछ संघ; जैसे-टिनोफोरा (Ctenophora), का
फोरोनिडी (Brachiopoda) तथा कीटोग्नेथा (Chaetognatha)
के मार केवल समुद्र में ही पाए जाते है। अलवण जल की मछलियों का विका
मछलियों से ही हुआ है।सरीसृप (Reptilia) समूह के साथ तयार
डाइनोसी उत्तरी सागर पोर्ट सूडान गोनदि (Echinodermata), (Phoronidea) धूपगढ़.
स्तनपायी (Mammalia) समूह के हेल,

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