कर्म क्या होता है -सद्गुरु

चलिए जानते हैं कि कर्म क्या है – जग्गी वासुदेव- सद्गुरु

चलिए जानते हैं कि कर्म क्या है जिस तरह किसी बात को ग्रहण करके मुझे जानते हैं उसे अनुभव करते हैं और जिस तरह किसी बात पर प्रतिक्रिया देते हैं वह आपके अतीत की यादों पर निर्भर करता है जारण के तौर पर अगर आप शांति दायक संगीत सुनना चाहते हैं और हम आपके लिए बहुत तेज आवाज में हिट्स वाले गाने चला दे तो आप की नसें फट जाएंगे लेकिन वहीं कुछ ऐसे नौजवान होंगे जिन्हें पसंद आएगा एक ही आवाज किसी एक इंसान के गानों को संगीत लगती है और किसी दूसरे को शो लगती है

आप किसी खास आवाज कैसे लेते हैं कि आपके कर्म हैं इसलिए हमने कहा था कि जब हम कर्म की बात करते हैं तो हमारा मतलब आपके कस्टम होने से नहीं होता या कर्म का बच्चा नहीं है कर्म का अर्थ होता है गतिविधि

इस वक्त यहां बैठे हुए हमारी गतिविधि चारा एवं में हो रही है भौतिक मानसिक भावनात्मक और ऊर्जा के स्तर पर आज आपके जागने के बल से इस पद तक इन चारों कर्मों में से कितनों के प्रति जागरूक रहे हैं आप नहीं गिन पा रहे होंगे मैं आपको बता रहा हूं कि यह 1% से भी कम होगा जवाब अपने कर्मों की केवल 1% के प्रति सचेत रहते हैं तो इसका मतलब यह हुआ कि आपकी जिंदगी में सब कुछ सहयोग से हो रहा है इसलिए इस तरह भी कह सकते हैं कि

जब आप सड़क पर गाड़ी चलाते हैं और 1% समय के लिए ही आंखें खुली रहते हैं बाकी समय आंखों को बंद करके गाड़ी चलाते हैं फिर घटना तो होनी है यही जीवन में हो रहा है और इसलिए जला ज्यादा तनाव इतना ज्यादा डर है क्योंकि जिंदगी में ज्यादातर लोग अचेतन में हो रहे हैं आप क्या कर रहे हैं आपका शरीर क्या कर रहा है आपकी उर्जा आपके विचार आपकी भावनाएं क्या कर रही हैं इन सब बातों के प्रति केवल मुट्ठी भर लोग ही जागरूक होते हैं अगर आप चेतना का दायरा बढ़ा देते हैं तो अचानक आपको महसूस होने लगता है

यह सब कुछ आपके हाथ में है अगर आप अपने शरीर की जागरूकता के साथ संभाल सकते हैं तो आपकी जिंदगी हर भाग्य का 15 से 20 तक आपके हाथ में होगा अगर आप अपनी भी सोचने की शक्ति पर काबू पा सकते हैं 40 से 50% भाग्य और जिंदगी आपके हाथों में होगी और अगर आपके साथ भावना मिल जाए तो समझिए कि दोनों का 40 से 70% भाग अपने काबू में कर लिया कर्म करना आता इंसान का धर्म है लेकिन कभी-कभी हम जीवन में आने वाली कठिनाइयों से इतना घबरा जाते हैं कि हर चीज का दोस्त परमात्मा को देते हैं जबकि इन सब के लिए हम जिम्मेदार होते हैं हर किसी का नजरिया होता है कान काम करने का और देखने का भी जो वस्तु हमें देखने में सही लगती है किसी दूसरे को शायद ना पसंद आए आप इसे बदल तो नहीं सकते लेकिन खुद को उस काबिल बना सकते हैं

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