जीवन में ये हमेशा याद रखना कि जब कोई किसी के बारे में बोलता है तो वास्तव में वो उनके बारे में नहीं अपने व्यक्तित्व के बारे में बता रहा होता है। हम उससे दूसरे को नहीं, लेकिन सुनाने वाले को जान जाते हैं, पहचान जाते हैं। क्योंकि वो अपने नजरिए से सुनाएगा। किसी तीसरी के अंदर विशेषता न भी हो लेकिन देखने वाले के अंदर वो नजर है, जो विशेषता देखेगा तो वो अच्छा- अच्छा ही सुनाएगा। किसी में विशेषता हो, लेकिन हमारे अंदर उसे देखने की नजर न हो तो हम कभी- कभी दूसरों के बारे में बहुत कड़वी बातें कह जाते हैं।
जब भी किसी का परिचय सुनाएं तो याद रखें कि वो उनका नहीं, अपना व्यक्तित्व दर्शा रहे हैं। दुनिया में आज सबसे बड़ी बीमारी असुरक्षा की है। यह घरों में भी आ जाती है, काम के क्षेत्र पर भी आ जाती है। सेवा के क्षेत्र पर भी आ जाती है।
असुरक्षा से घिरे हम औरों को आगे बढ़ता हुआ नहीं देख पाते हैं। अध्यात्म में हमें यह सीखने को मिलता है कि हम जितना औरों को आगे बढ़ाएंगे उतना ही हम स्वतः आगे बढ़ जाएंगे। जितना औरों को आगे बढ़ने से रोकेंगे तो बाकी भी सारा कुछ स्वतः ही हो जाएगा। ये स्वर्ग जिसके बारे में हमने सुना है और हम कहते हैं कि स्वर्ग बनाएंगे
। तो आज इसे देखने की कोशिश करते हैं। आज का मेरा जीवन जहां मैं हूं। जिस परिवार में, जिन लोगों के साथ, जिस सेवा स्थान पर, जिस कर्मक्षेत्र पर… मुझे उसे स्वर्ग बनाना है। आप उस स्थान को देखिए कि वो स्वर्ग कैसा होगा। इस स्वर्ग में सिर्फ खुद को देखें कि मेरा सबके साथ व्यवहार कैसा होगा। बात करने का तरीका कैसा होगा।
सामने से कोई गलती करेगा तो मैं उस बात में कैसी प्रतिक्रिया करूंगा। जीवन में चलते-चलते अचानक कोई बड़ी बात आ जाए, तो मैं कैसे सामना करूंगा। कोई मेरे साथ गलत करेगा, यहां तक कि मेरा नुकसान भी कर सकता है, जो कि रिश्तों में भी हो सकता है। काम में भी हो सकता है। कार्यक्षेत्र पर भी हो सकता है। तो आपने क्या किया ? लेट गो कर दिया या पकड़ा हुआ है।
एक तर्क है कि जब सतयुग आएगा तो हमारा जीवन बहुत सहज होगा। इस सृष्टि पर कलियुग कैसे बना, इस पर विचार करें। पहले किसी एक ने गुस्सा किया होगा । और उसका काम हो गया होगा। सामने से हमने खड़े होकर देखा वाह, ऐसे काम होता है। तब मैंने कहा कि अगली बार मैं भी ऐसा वाला तरीका ट्राई करूंगा। अगली बार एक किसी और ने किया, तीसरे टाइम किसी और ने किया। धीरे-धीरे पहले वो मेरा संस्कार बना, फिर वो औरों का संस्कार बना, फिर सबका संस्कार बना तब वो कलियुग बन गया। पहले जब किसी एक ने गुस्सा किया होगा तब वो दुनिया कलियुग नहीं थी ।
तब अधिकांश लोग शांत होंगे उसमें से किसी एक ने गुस्सा किया होगा । उसे देख दूसरे ने किया होगा, फिर तीसरे ने किया होगा । एक ने झूठ बोला, एक ने रिश्वत ली, सबने शुरू किया होगा। एक ने किया, पांच ने किया, दस ने किया, लाख ने किया, फिर पूरी सृष्टि ने कर दिया तो कलियुग बन गया।
| अब कलियुग से सतयुग बनाना है, यह कैसे बनेगा। पहले सारे शांत थे एक ने गुस्सा किया होगा । अभी क्या होगा…. सारे परेशान होंगे एक स्ट्रांग रहेगा। पहले क्या था सब सच बोल रहे थे एक ने झूठ बोला होगा। अभी क्या होगा ज्यादातर झूठ बोल रहे होंगे एक सच बोलेगा। पहले क्या था सब ईमानदार थे एक ने रिश्वत ली होगी। अब अपने आपसे पूछना है।
हम बहाव के उल्टी दिशा में बहने का संकल्प कर रहे हैं। हमें दूसरी दिशा में जाना है । जो तय कर लेगा, वो कर लेगा ।
कि क्या मैं वो एक हूं। क्या मैं वो एक बनना चाहता हूं। मुझ एक को देख परमात्मा क्या कहता है- जैसा कर्म आप करेंगे आपको देख और करेंगे। जब हम कुछ करते हैं तो हमारी वाइब्रेशन चारों तरफ फैल जाती है। वो औरों को भी टच करती है। वो भी वैसा करना शुरू करेंगे।
लेकिन उस एक को हिम्मतवाला बनना पड़ेगा। सारे आस-पास अशांत हैं, परेशान हैं, गुस्सा भी करते हैं, कहते हैं गुस्सा करना भी पड़ता है, लेकिन मुझे सतयुग लाना है। अगर ये आसान होता, तो हिम्मत किसलिए चाहिए होती । क्योंकि हम बहाव के उल्टी दिशा में बहने का संकल्प कर रहे हैं। अधिकांश लोग एक दिशा में आएंगे हमें दूसरी दिशा में जाना है। हम ऐसे समय में चल रहे हैं जब वातावरण का वाइब्रेशन भी निगेटिव है।
लेकिन उस वायुमंडल में हमें बदलना है। जो तय कर लेगा, वो कर लेगा । क्योंकि हमें अकेले नहीं करना है, हमें परमात्मा की शक्ति को अपने साथ लेकर करना है। हमें सिर्फ निर्णय लेना है। क्या हम ये करने के लिए तैयार हैं?
- बीके शिवानी