मूल प्रवृत्तियां ( mool pravattiyan)
मूल पर्वतों की उत्पत्ति व्यक्ति के जन्म से होती है उसी से संवेगों की उत्पत्ति होती हैं।
मैक्कड्यूगर ( macdular )ने 14 प्रकार की मूल प्रवृत्ति बतायी हैं।
मूल प्रवृत्तियों पर अध्ययन करने वाले मैकड्यूलर ने मनोविज्ञान में प्रथम स्थान दिया गया है।
मूल प्रवृत्ति क्रिया करने का सीखा हुआ स्वरुप है।
मूल प्रवृत्तियों की विशेषताएं ( mool pravattiyon ki visheshtayen)
1. यह जन्मजात होती हैं- जैसे भूख प्यास निद्रा
2. मूल प्रवृत्तियां प्रयोजन युक्त होती हैं तथा या किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए होती हैं।
3. मूल प्रवृत्तियां प्रयोजनयुक्त होती हैं यह सभी
प्राणियों में पायी जाती हैं।
4. मूल पर्वतीय जीवन भर नष्ट नहीं होती।
5. मूल प्रवृत्ति किसी एक संवेग से जुड़ी होती है।
मूल प्रवृत्ति के 3 पक्ष होते हैं।
1. संज्ञानात्मक पक्ष।
2. संवेगात्मक पक्ष /भावात्मक पक्ष।
3. क्रियात्मक या मनोगधात्मक पक्ष
मूल प्रवृत्तियां तथा संवेग
मूल प्रवत्तियाँ 14 प्रकार की होती हैं, मूल प्रवत्ति से संवेग उत्पन्न होते हैं, मूल प्रवत्ति तथा उससे उत्पन्न संवेग निम्नवत दिए गए हैं।
- पलायन – भय
- जुगुप्सा – लड़ना
- विकर्षण- घृणा
- संतान कामना – वात्सल्य
- पृर्थना शरणागत -करुणा
- काम पृवत्ति- कामुकता
- उत्सुकता / जिज्ञासा – आश्चर्य
- विविधता – आत्म हीनता
- आत्म गौरव आत्मभिमान
- सामूहिकता -एकाकीपन
- भोजन तलाश -भूख
- संग्रहण- अधिकार
- रचना धर्मिता -कृतिभाव
- हसना-अमोह